Monday, May 31, 2010

प्रीतम छबि नैनन बसी

प्रीतम छबि नैनन बसी, पर-छबि कहां समाय।भरी सराय 'रहीम' लखि, पथिक आप फिर जाय

Arun Singh जिन आँखों में प्रियतम की छवि बस गयी, वहां किसी दूसरी छवि को कैसे जगह मिल सकती है? जैसे की भरी हुई सराय को देखकर पथिक स्वयं वहां से लौट जाता है। (मन में जिसने भगवान को बसा लिया, वहां से माया, कोई जगह न पाकर, उल्टे पांव लौट जाती है।)


Arvind Mishra Where the God's own shadow dwells,there is no place for worldly influences;seeing the inn filled up the traveller turns away

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