Monday, May 31, 2010

होय बुराई तें बुरो,

होय बुराई तें बुरो, यह कीनों करतार ।खाड़ खनैगो और को, ताको कूप तयार ॥

जाको जहाँ स्वारथ सधै, सोई ताहि सुहात ।चोर न प्यारी चाँदनी, जैसे कारी रात

कन –कन जोरै मन जुरै, काढ़ै निबरै सोय ।बूँद –बूँद ज्यों घट भरै, टपकत रीतै तोय

मूढ़ तहाँ ही मानिये, जहाँ न पंडित होय ।दीपक को रवि के उदै, बात न पूछै कोय

कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर । समय पाय तरुवर फरै, केतिक सींचौ नीर

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