होय बुराई तें बुरो, यह कीनों करतार ।खाड़ खनैगो और को, ताको कूप तयार ॥
जाको जहाँ स्वारथ सधै, सोई ताहि सुहात ।चोर न प्यारी चाँदनी, जैसे कारी रात
कन –कन जोरै मन जुरै, काढ़ै निबरै सोय ।बूँद –बूँद ज्यों घट भरै, टपकत रीतै तोय
मूढ़ तहाँ ही मानिये, जहाँ न पंडित होय ।दीपक को रवि के उदै, बात न पूछै कोय
कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर । समय पाय तरुवर फरै, केतिक सींचौ नीर
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