Tuesday, January 5, 2010

`कबिरा' खाई कोट की

`कबिरा' खाई कोट की, पानी पिवै न कोइ।जाइ मिलै जब गंग से, तब गंगोदक होइ

किले को घेरे हुए खाई का पानी कोई नहीं पीता, कौन पियेगा वह गंदला पानी ? पर जब वही पानी गंगा में जाकर मिल जाता है, तब वह गंगोदक बन जाता है, परम पवित्र

Kabir says that no one drinks the water of a moat around the fort but when that moat meets the River Ganga it becomes the Holy and pure water of the river Ganges.

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