Tuesday, January 5, 2010

संपति भरम गँवाइके

संपति भरम गँवाइके , हाथ रहत कछु नाहिं।ज्यों `रहीम' ससि रहत हैं, दिवस अकासहिं माहिं

बुरे व्यसन में पड़कर जब कोई अपना धन खो देता हैं, तब उसकी वही दशा हो जाती हैं, जैसी दिन में चन्द्रमा की। अपनी सारी कीर्ति से वह हाथ धो बैठता हैं


Rahim says that just like the moon in the daytime(that lacks all brilliance in the day), When we loose all property under the delusion(of everlasting wealth), we land up having nothing in hand;

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