काह कामरी पामड़ी, जाड़ गए से काज।`रहिमन' भूख बुताइए, कैस्यो मिले अनाज
क्या तो कम्बल और क्या मखमल का कपड़ा! असल में काम का तो वही हैं, जिससे कि जाड़ा चला जाय। खाने को चाहे जैसा अनाज मिल जाय, उससे भूख बुझनी चाहिए। (तुलसीदासजी ने भी यही बात कही है कि - का भाषा, का संस्कृत, प्रेम चाहिए साँच। काम जो आवै कामरी, का लै करै कमाच॥)
Whether with blanket or with velvet is unimportant , the cold has to be alleviated; somehow get rid of hunger with whichever grain
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